देश की न्यायिक व्यवस्था में आज से बड़ा बदलाव हो गया है। ब्रिटिश काल से चली आ रही आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम अब बदल गए हैं। इनकी जगह अब भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने ले ली है। यही नहीं भारतीय न्याय संहिता के तहत देश का पहला केस दिल्ली में एक स्ट्रीट वेंडर के खिलाफ दर्ज किया गया है। विपक्षी दलों का कहना है कि इन कानूनों को सरकार जल्दबाजी में लाई है और संसद में पर्याप्त डिबेट भी नहीं हो सकी। वहीं सरकार का कहना है कि अब दंड नहीं बल्कि लोगों को न्याय मिलेगा और हमने गुलामी के प्रतीकों को खत्म कर दिया है। आइए जानते हैं, तीन नए कानूनों से क्या बदला…
1. इन कानूनों में प्रावधान है कि ट्रायल पूरा होने के 45 दिन के अंदर फैसला आ जाना चाहिए। इसके अलावा पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर ही आरोप तय होने चाहिए।
2. नए कानूनों के अनुसार कोई भी व्यक्ति देश के किसी भी थाने में जीरो एफआईआर दर्ज करा सकता है। इससे ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराने में मदद मिलेगी और समन भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से भेजे जा सकेंगे।
3. सभी गंभीर आपराधिक मामलों में क्राइम सीन की वीडियोग्राफी अनिवार्य होगी। प्रक्रिया तेज करने के लिए ऑनलाइन समन भेजे जाएंगे। इसके अलावा टाइमलाइन के तहत ही अदालतों में सुनवाई होगी।
4. यदि किसी मामले में पीड़ित को एफआईआर दर्ज करानी है तो वह बिना पुलिस थाने गए भी ऐसा कर सकता है। इससे केस तुरंत दर्ज हो सकेंगे और पुलिस को भी समय रहते ऐक्शन लेने का वक्त मिलेगा।
5. शिकायतकर्ता को एफआईआर की एक कॉपी भी तत्काल मिलेगी।
6. नए कानूनों के तहत महिला और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों के पीड़ितों का अस्पतालों में मुफ्त इलाज होगा।
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7. इन नियमों में गवाहों की सुरक्षा पर भी फोकस किया गया है। सभी राज्य सरकारें गवाह संरक्षण योजना पर काम करेंगी। इससे लोगों का न्यायिक प्रक्रिया में भरोसा बढ़ेगा और वे अहम मामलों में भी गवाही देने से बचेंने नहीं।
8. पुलिस की ओर से रेप जैसे संवेदनशील मामलों में पीड़ित के बयान की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग कराई जाएगी।
9. नए नियमों के अनुसार 15 साल से कम आयु के बच्चों और 60 साल से अधिक आयु के लोगों को थाने जाने की जरूरत नहीं होगी।
10. इनके अलावा दिव्यांगों और गंभीर रूप से बीमार लोगों को भी थाने में पेश होने की जरूरत नहीं होगी।
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