SC-ST कोटे में सब-कैटेगराइजेशन को सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया सही, अनुच्छेद 14 के तहत जायज

SC-ST कोटे में सब-कैटेगराइजेशन को सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया सही, अनुच्छेद 14 के तहत जायज

[ad_1]

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए  गुरुवार को आरक्षित अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों (एससी/एसटी) को आरक्षण के लाभ के लिए पिछड़ेपन के आधार पर विभिन्न समूहों में उप-वर्गीकृत को सही ठहराया है। कोर्ट में पंजाब राज्य और अन्य बनाम दविंदर सिंह के मामले पर सुनवाई चल रही थी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की सात जजों वाली संवैधानिक पीठ ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के 2005 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि एससी/एसटी का उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 341 के खिलाफ है, जो राष्ट्रपति को एससी/एसटी की सूची तैयार करने का अधिकार देता है।

मुख्य न्यायधीश के अलावा इस बेंच में जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल थे। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने बहुमत से असहमति जताई और फैसला सुनाया कि इस तरह का उप-वर्गीकरण सही नहीं है। पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, “एससी/एसटी के लोग अक्सर भेदभाव की वजह से आगे नहीं बढ़ पाते हैं। अनुच्छेद 14 जाति के उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है। कोर्ट को यह देखना चाहिए कि क्या सभी वर्ग समान हैं या किसी भी तरह से आगे नहीं बढ़ पाए वर्ग को आगे बांटा जा सकता है।” इसके साथ ही कोर्ट ने पंजाब, तमिलनाडु और अन्य राज्यों में इस तरह के उप-वर्गीकरण के लिए कानून की वैधता को बरकरार रखा।

उच्चतम न्यायालय ने इस संबंध में पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006 को बरकरार रखा। इसी तरह तमिलनाडु अरुंथथियार (शैक्षणिक संस्थानों में सीटों का विशेष आरक्षण और अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण के भीतर राज्य के अधीन सेवाओं में नियुक्तियों या पदों का आरक्षण) अधिनियम, 2009 को भी कोर्ट ने सही माना। यह राज्य के अनुसूचित जातियों के लिए 18% आरक्षण के भीतर शैक्षणिक संस्थानों और राज्य सरकार के पदों में अरुंथथियार के लिए आरक्षण प्रदान करता है।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006 की वैधता से संबंधित एक मामले में आया है जिसमें आरक्षित श्रेणी के समुदायों का उप-वर्गीकरण शामिल था। इस कानून को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया। इसके बाद पंजाब सरकार ने शीर्ष अदालत में अपील की थी। ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य में 2005 के संविधान पीठ के फैसले के आधार पर कानूनों को चुनौती दी गई थी जिसमें कहा गया था कि एससी का उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 341 के खिलाफ है, जो राष्ट्रपति को एससी/एसटी की सूची तैयार करने का अधिकार देता है। चिन्नैया मामले में दिए गए फैसले में कहा गया था कि सभी एससी एक समरूप वर्ग बनाते हैं और उन्हें उप-विभाजित नहीं किया जा सकता है।

ई.वी. चिन्नैया मामले में दिए गए फैसले से पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा असहमति जताए जाने के बाद, इस मामले को 2020 में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ के पास भेज दिया गया था। शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि पंजाब सरकार के कानून का उद्देश्य आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को बाहर करना हो सकता है जो कानून में दी गई छूट के कारण पहले ही लाभान्वित हो चुके हैं। केंद्र सरकार ने देश में दलित वर्गों के लिए आरक्षण का बचाव किया था और यह कहा था कि वह उप-वर्गीकरण के पक्ष में है। राज्यों ने कहा कि एससी/एसटी का उप-वर्गीकरण अनुच्छेद 341 का उल्लंघन नहीं करता है क्योंकि यह राष्ट्रपति द्वारा तैयार की गई सूची से छेड़छाड़ नहीं करता है।

[ad_2]