छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में माना है कि नाबालिग लड़की के हर अपहरण को आईपीसी की धारा 366 के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे अपराध के तत्वों की पुष्टि पीड़ित लड़की के बयान के अलावा रिकॉर्ड पर मौजूद मेडिकल और फोरेंसिक साक्ष्यों से भी होनी चाहिए ताकि आरोपी की मंशा स्थापित हो सके। बता दें कि, अब से पहले किसी महिला के अपहरण, बहला-फुसलाकर भगा ले जाना या शादी के लिए मजबूर करने आदि को आईपीसी की धारा 366 के तहत अपराध माना जाता था।
अभियोजन पक्ष का आरोप था कि इससे पहले भी आरोपी द्वारा 14 वर्षीय नाबालिग को कई बार अगवा किया गया था, हाईकोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष कथित यौन उत्पीड़न के अपराध को साबित करने में असमर्थ रहा, जो आईपीसी की धारा 366 के तहत आवश्यकता को पूरा कर सकता था।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, बेंच ने कहा, “…केवल यह पता लगाना कि महिला को अगवा किया गया था, काफी नहीं है। यह भी साबित किया जाना चाहिए कि आरोपी द्वारा मजबूर करके विवाह करने या जबरन संभोग करने का इरादा भी साबित होना चाहिए।”
महासमुंद की स्पेशल पॉक्सो कोर्ट द्वारा आरोपी को 2024 में पॉक्सो एक्ट की धारा 363, 366, 506 (ii) और धारा 4 (2) के तहत दोषी ठहराया गया था। हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 366 और पॉक्सो एक्ट की धारा 4 (2) के संदर्भ में आंशिक रूप से दोषसिद्धि को रद्द कर दिया है। अभियोजन पक्ष ने बताया गया था कि आरोपी युवक, नाबालिग लड़की का दूर का रिश्तेदार है, उसने कथित तौर पर नवंबर 2022 में दो बार लड़की को अगवा करने की कोशिश की थी। हालांकि, नवंबर के अंत में उसकी ऐसी एक कोशिश को लड़की की मां और एक अन्य व्यक्ति ने नाकाम कर दिया था।
इसके बाद पुलिस ने आरोपी पर जबरन यौन संबंध बनाने और अगवा करने के लिए जान से मारने की धमकी देने के साथ-साथ आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत चार्जशीट दायर की थी। अदालत ने ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड को देखने के बाद पाया कि पीड़िता ने मजिस्ट्रेट को दिए गए अपने एस.164 सीआरपीसी बयान में बलात्कार की घटना का जिक्र नहीं किया था। उसने केवल आरोपी द्वारा अगवा का जिक्र किया था।
वहीं, कोर्ट ने इस पर भी गौर किया कि लड़की द्वारा पुलिस को दिए गए सीआरपीसी की धारा 161 के बयान में बलात्कार का आरोप है। अक्टूबर 2022 में आरोपी ने नवंबर में अपहरण के प्रयास की दो घटनाओं से पहले भी, पीड़ित लड़की संग जबरन शारीरिक संबंध बनाए थे, जब वह अकेली थी।
कोर्ट ने कहा, “लड़की की एमएलसी रिपोर्ट को देखने से भी यह स्पष्ट है कि लड़की के शरीर पर कोई बाहरी चोट नहीं पाई गई थी और आंतरिक जांच में हाइमन झिल्ली नहीं फटी थी… उक्त डॉक्टर की राय के अनुसार, पीड़िता कुंवारी हो सकती है और पीड़िता के शरीर में संभोग के कोई निशान नहीं देखे गए।”
इसके अलावा, पीड़िता की स्लाइड या कपड़ों में वीर्य के धब्बे या मानव शुक्राणु का कोई संकेत नहीं था। अदालत ने बताया कि शिकायतकर्ता और पीड़िता के पिता ने भी एफआईआर दर्ज करने के समय दुष्कर्म का आरोप नहीं लगाया था, हालांकि अभियोजन पक्ष के अनुसार उन्हें यौन उत्पीड़न के बारे में पहले से पता था।
अभियोजन पक्ष के बयान में इन विसंगतियों के आधार पर हाईकोर्ट ने माना कि आरोपी ने नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म नहीं किया था। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में भी विफल रहा कि आईपीसी की धारा 363 के तहत अपहरण आईपीसी की धारा 366 में वर्णित उद्देश्यों में से एक के लिए किया गया था। हाईकोर्ट ने मोहम्मद यूसुफ उर्फ मौला और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य (2020) पर भरोसा करते हुए यह फैसला सुनाया।